कहानी का नाम: "खेत की रक्षा"
एक गाँव के किनारे एक बड़ा फलदार खेत था। वहाँ बरगद, आम, केला और जामुन के पेड़ थे। हर पेड़ पर ढेर सारी चिड़ियाँ अपना घोंसला बनाकर रहती थीं। पेड़ों पर तरह-तरह के फल लगते और उन फलों को खाने कई बंदरों का झुंड भी रोज़ खेत में आता।
चिड़ियाँ और बंदर दोनों वहाँ के पुराने निवासी थे। वे कभी-कभी आपस में झगड़ते भी, लेकिन ज्यादातर समय एक-दूसरे के साथ हँसी-खुशी रहते।
नई मुसीबत आई
एक दिन खेत का मालिक गाँव छोड़कर चला गया। अब खेत की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। धीरे-धीरे लोग वहाँ कचरा फेंकने लगे, और कुछ अजनबी लोग आकर फल तोड़ ले जाते। पेड़ दुखी हो गए, चिड़ियाँ डरने लगीं और बंदर परेशान हो गए।
सभी ने मिलकर योजना बनाई
धीरे-धीरे खेत फिर से हरा-भरा दिखने लगा। गाँव के लोग जब लौटे तो उन्होंने देखा कि जानवर और पेड़ मिलकर खेत की रक्षा कर रहे हैं।
खुशहाली लौटी
गाँववालों ने खेत को फिर से सजा दिया, एक कोना चिड़ियों के लिए सुरक्षित बना दिया, और बंदरों को उनके लिए कुछ खास पेड़ दिए। अब हर साल वहाँ "पेड़-पालन दिवस" मनाया जाता है, जहाँ बच्चे आते, चिड़ियों को दाना डालते और बंदरों को केले खिलाते।
शिक्षा:
जब इंसान नहीं होते, तब भी प्रकृति अपने रक्षक खुद चुन लेती है। पेड़, चिड़ियाँ और जानवर मिलकर भी अपनी दुनिया को बचा सकते हैं – बस एकता चाहिए।
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