कहानी: "आम के बाग की मधुर धुन"

गर्मियों की एक सुनहरी सुबह थी। सूरज की हल्की किरणें आम के बाग़ को चमका रही थीं। चारों ओर हरियाली फैली थी और बाग़ में आम के पेड़ अपनी मीठी खुशबू से वातावरण को महका रहे थे। बाग़ के बीचों-बीच एक बूढ़ा, विशाल आम का पेड़ था जिसे सब “बाग़ का राजा” कहते थे।

इसी पेड़ पर रहती थीं तीन खास सहेलियाँ – कोयल, बुलबुल और एक नटखट पपीहा। ये तीनों हर दिन आम के पेड़ों पर फुदकतीं, गातीं और मज़े से जीवन बितातीं।

एक दिन, जब आम के फल पकने लगे, तो कोयल ने अपनी मधुर आवाज़ में गाना शुरू किया:

“कुहू कुहू… आम पके मीठे रस से,
पेड़ों पर बहार आई, जैसे हो कोई स्वर्ण किरण सी।”

बुलबुल झट से बोली, “अब मेरी बारी!”
वह पेड़ की एक ऊँची टहनी पर बैठी और गाने लगी:

“चहक-चहक बुलबुल बोले,
हर डाली पर जीवन डोले।
आम की मिठास में बसी,
हमारी दोस्ती की ये झोली।”

सारा बाग़ उनकी आवाज़ों से गूंज उठा। पपीहा भी पीछे न रहा। वह बादलों को देख गुनगुनाया:

“पपीहा बोले प्यासा रे,
बरस जाए पानी वाला बादल रे।
मिटे सबकी प्यासी धड़कन,
भर जाए आम की रसभरी थाली।”

सुनते ही बूढ़ा आम का पेड़ हँस पड़ा। उसने अपनी शाखें हिलाईं और कहा,
“तुम तीनों की दोस्ती और तुम्हारे गीतों ने मेरे बाग़ को जीवित बना दिया है। हर साल आम पकते हैं, पर ऐसा संगीत बहुत कम सुनाई देता है।”

तभी कुछ बच्चे बाग़ में खेलने आए और उन मीठे आमों को देखा। पर उन्होंने आम तोड़े बिना ही कोयल, बुलबुल और पपीहा की आवाज़ों का आनंद लिया। बच्चों ने भी मिलकर गाना गाया:

“पेड़ों की छाया, पक्षियों का संगीत,
जीवन में भर दे ये मधुर प्रीत।”

अंत में, कोयल बोली, “सच्ची खुशी बाँटने में है, और प्रकृति का संगीत हमें जोड़ता है।”
बुलबुल मुस्कुराई, “हम सब मिलकर इस बाग़ को जीवन देते हैं।”
पपीहा बोला, “और जब पहली बारिश गिरेगी, हम सब फिर मिलकर नया गीत बनाएंगे।”

सीख:
प्रकृति और जीवों के बीच एक सुंदर तालमेल होता है। जब हम उसे सम्मान देते हैं, तो वह हमें आनंद, मिठास और संगीत से भर देती है।