बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में "अम्मा" नाम की एक बूढ़ी महिला रहती थी। सब लोग उन्हें प्यार से अम्मा कहते थे। अम्मा का अपना कोई नहीं था, लेकिन पूरे गाँव के लोग ही उसके परिवार थे। वो गाँव के बच्चों को कहानियाँ सुनाती, बीमारों की सेवा करती और गाँव के मंदिर की साफ-सफाई भी करती।
🌾 अम्मा की सादगी
अम्मा एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थीं। उनके पास ज़्यादा कुछ नहीं था — एक चटाई, एक मिट्टी का चूल्हा, और थोड़े बहुत बर्तन। लेकिन फिर भी वो हमेशा खुश रहती थीं। उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी – उनका अनुभव और उनकी समझदारी।
🌧️ कठिन समय
एक बार गाँव में तेज़ बारिश हुई। नदी में बाढ़ आ गई और खेतों में पानी भर गया। गाँव के कई लोग परेशान हो गए। फसलें डूब गईं, रास्ते बंद हो गए, और लोगों को खाने के लाले पड़ गए।
गाँव वाले पंचायत में इकट्ठा हुए और सोचने लगे कि क्या करें। सब एक-दूसरे को देख रहे थे लेकिन किसी के पास समाधान नहीं था।
🧠 अम्मा की सलाह
तभी एक नौजवान बोला, "क्यों न अम्मा से सलाह ली जाए? उन्होंने बहुत कुछ देखा है ज़िंदगी में।"
अम्मा को बुलाया गया। अम्मा धीरे-धीरे आईं, अपनी लकड़ी की लाठी के सहारे। उन्होंने सबकी बात सुनी और बोलीं:
“जब पानी बढ़ता है, तब ऊँचाई की तरफ जाना चाहिए। गाँव के पीछे जो टीला है, वहाँ अनाज और जानवरों को ले जाओ। और हर घर का खाना मिलाकर एक 'भोजन केंद्र' बनाओ, जिससे कोई भूखा न रहे।”
गाँव वालों ने वैसा ही किया। टीले पर सबका अनाज, जानवर और ज़रूरी सामान पहुँचाया गया। बच्चों, बूढ़ों और बीमारों को वहीं रखा गया।
🌤️ बाढ़ के बाद
कुछ ही दिनों में बाढ़ का पानी उतर गया। कोई जान-माल का नुकसान नहीं हुआ क्योंकि अम्मा की सलाह ने सबको बचा लिया था। सभी गाँव वाले बहुत खुश हुए। उन्होंने अम्मा को गाँव की "सम्मानित बुज़ुर्ग" घोषित कर दिया।
🌟 सीख / नैतिक शिक्षा:
"अनुभव उम्र से नहीं, समझदारी से आता है। बुज़ुर्गों की बात हमेशा ध्यान से सुननी चाहिए।"
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