नदी के किनारे जंगल की कहानी

 नदी के किनारे जंगल की कहानी

परिचय

बहुत समय पहले एक घने जंगल के बीच से एक साफ और शांत नदी बहा करती थी। इस नदी का पानी इतना साफ था कि उसमें मछलियाँ तैरती दिखतीं और पेड़ों की छायाएँ झलकती थीं। नदी के किनारे ऊँचे-ऊँचे पेड़, हरी घास और रंग-बिरंगे फूल जंगल को सुंदर बनाते थे। यह जंगल न सिर्फ पेड़ों और पौधों से भरा हुआ था, बल्कि यहाँ कई जानवर, पक्षी और अन्य जीव भी रहते थे। वे सभी इस नदी से पानी पीते, खेलते और अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाते थे।

नदी के पास का जीवन

नदी के किनारे कई जानवरों का बसेरा था। हिरण, खरगोश, हाथी, और कई तरह के पक्षी यहाँ रोज़ पानी पीने आते थे। पेड़ों पर बंदर कूदते-फाँदते रहते, और पक्षी अपनी मीठी आवाज़ों से जंगल की शांति को संगीत में बदल देते। नदी के उस पार एक बड़ी पहाड़ी थी, जहाँ से रोज़ सुबह सूरज की किरणें नदी पर पड़तीं, तो ऐसा लगता जैसे नदी में सोने की चमक भर गई हो।

इस जंगल में शेरू शेर, मोरू मोर, गिल्लू गिलहरी, और बंटी हाथी जैसे कई जानवर रहते थे। सबके अपने-अपने समूह थे, लेकिन नदी के पास आकर सब एक साथ समय बिताते। यह जगह सबके लिए सुख और शांति का प्रतीक थी।

नदी पर संकट

एक दिन जंगल में कुछ अजीब घटित हुआ। नदी में अचानक पानी कम होने लगा। वह जो नदी कल तक साफ और चमचमाती थी, अब धीरे-धीरे सूखने लगी। जंगल के सभी जानवर चिंतित हो गए। हिरणों को पानी की कमी महसूस होने लगी, पक्षियों को नहाने के लिए पानी नहीं मिला, और हाथी बंटी भी परेशान हो गया क्योंकि उसे हर दिन बहुत सारा पानी चाहिए होता था।

जानवरों ने मिलकर एक बैठक बुलाई। शेरू शेर ने कहा, "अगर यही हाल रहा तो हमारा जंगल खतरे में पड़ जाएगा। हमें समझना होगा कि इस पानी की कमी का कारण क्या है।"

मिलकर समस्या का समाधान

सबने सोचा और फैसला किया कि वे नदी के स्रोत तक जाएंगे और पता करेंगे कि वहाँ क्या समस्या है। मोरू मोर और गिल्लू गिलहरी सबसे फुर्तीले थे, इसलिए उन्हें नदी के स्रोत तक जाने का काम सौंपा गया। वे दोनों पहाड़ी की ओर चल पड़े, जहाँ से नदी का पानी आता था।

रास्ते में उन्होंने देखा कि कुछ बड़े-बड़े पेड़ कट चुके थे, जिसकी वजह से मिट्टी ढीली हो गई थी और पानी को सोख रही थी। यही कारण था कि नदी का बहाव रुक गया था। गिल्लू ने कहा, "हमें इस समस्या का समाधान जल्दी करना होगा, नहीं तो पूरा जंगल सूख जाएगा।"

जंगल के जानवरों की मेहनत

गिल्लू और मोरू ने शेरू शेर और बाकी जानवरों को सबकुछ बताया। फिर सबने मिलकर फैसला किया कि वे नदी के पास नए पेड़ लगाएंगे और जो पेड़ कटे थे, उनकी भरपाई करेंगे। बंटी हाथी ने अपनी सूँड से मिट्टी खोदने और पौधे लगाने में मदद की। गिल्लू ने बीज लाकर लगाए, और मोरू ने पानी का इंतजाम किया।

सभी जानवरों ने एकजुट होकर पेड़ लगाए और जंगल के वातावरण को ठीक करने की कोशिश की। धीरे-धीरे नदी का पानी फिर से बहने लगा। नए पेड़ों ने मिट्टी को बाँध लिया और पानी फिर से साफ बहने लगा।

नदी का वापस लौटना

कुछ ही दिनों में जंगल की नदी फिर से पहले जैसी हो गई। पानी साफ, चमकदार और मीठा बहने लगा। जानवरों में खुशी की लहर दौड़ गई। अब फिर से हिरण नदी पर पानी पीने आए, पक्षियों ने उसमें नहाना शुरू किया, और बंटी हाथी ने अपनी सूँड भरकर पानी उलीचना शुरू किया।

शेरू ने कहा, "यह हमारी मेहनत और एकजुटता का नतीजा है। अगर हम सब मिलकर काम करेंगे, तो कोई भी संकट हमें नहीं रोक सकता।"

सीख

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि जब भी किसी जगह पर संकट आए, तो मिलकर और समझदारी से काम करने से हर समस्या का समाधान मिल सकता है। नदी जंगल के सभी प्राणियों के लिए जीवनदायिनी थी, और उन्होंने उसे बचाने के लिए मिलकर काम किया। यही एकता और सहयोग की असली ताकत है।

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