सेब, अंगूर और आम के पेड़ की दोस्ती

एक हरे-भरे बाग में तीन खास पेड़ रहते थे — सेब का पेड़, अंगूर की बेल, और आम का पेड़। ये तीनों सालों से एक ही बाग में साथ रहते थे, लेकिन उनके स्वभाव एक-दूसरे से बहुत अलग थे।

पहला भाग – घमंड और तुलना

सेब का पेड़ हमेशा खुद पर बहुत गर्व करता था। वह हर किसी से कहता,
"मुझे देखो! मेरे लाल-लाल रसीले फल दुनिया में सबसे सुंदर हैं। हर बच्चा मेरे फल के लिए मचलता है।"

आम का पेड़ शांत था, लेकिन जब उसकी बारी आती, तो वह मुस्कुरा कर कहता,
"तुम्हारे सेब सुंदर हो सकते हैं, पर मेरे आम का स्वाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। गर्मियों का राजा मैं ही हूं!"

अंगूर की बेल ज़मीन से ऊपर चढ़ती थी, लेकिन वह दोनों पेड़ों के मुकाबले छोटी थी। उसने कई बार कोशिश की कि वह भी अपना योगदान ज़ाहिर करे, लेकिन सेब और आम के पेड़ उसे गंभीरता से नहीं लेते थे।

"तुम तो एक बेल हो," सेब कहता, "तुम्हें खुद खड़ा रहने की ताकत भी नहीं!"
"बिलकुल," आम हँसते हुए कहता, "तुम सिर्फ टहनियों पर लिपटती हो। असली पेड़ तो हम हैं।"

अंगूर चुपचाप यह सब सहता रहा। उसका स्वभाव विनम्र था। वह जानता था कि समय ही सबसे बड़ा शिक्षक है।


दूसरा भाग – समय का फेर

समय बीतता गया। एक साल बारिश बहुत कम हुई। गर्मी असहनीय थी। ज़मीन सूखने लगी। बाग में पानी की कमी हो गई। बाग़ का माली बूढ़ा हो गया था, और अब रोज़-रोज़ पानी देना उसके लिए मुश्किल था।

सेब के पेड़ की हरी पत्तियाँ मुरझाने लगीं। फल गिरने लगे। आम का पेड़ भी सूखने लगा, और उसकी शाखाएं झूल गईं।

लेकिन अंगूर की बेल में हरियाली अभी भी थी। उसकी वजह ये थी कि अंगूर की जड़ें ज़्यादा गहरी नहीं जातीं, लेकिन उसकी बेल छाया देती है, और उसकी मिट्टी को नम बनाए रखती है। इसके अलावा, अंगूर की बेल के नीचे उगने वाले छोटे पौधों ने ज़मीन को ठंडा रखा था।

माली ने देखा कि अंगूर की बेल अभी भी हरी है। उसने पास के कुएं से जो थोड़ा पानी बचा था, वह बेल को देने लगा। बेल के नीचे की मिट्टी थोड़ी नम हो गई और उसके आसपास उग रहे पौधों को भी राहत मिली।

धीरे-धीरे, बेल की छाया से आम और सेब के पेड़ की जड़ें भी ठंडी रहने लगीं। कुछ सप्ताहों में दोनों पेड़ थोड़े ठीक दिखने लगे।


तीसरा भाग – पछतावा और सच्ची दोस्ती

सेब और आम का पेड़ अब समझ गए थे कि जिसे वे छोटा और कमजोर समझते थे, वही आज उनके लिए सहारा बना है।

एक सुबह, सेब ने अंगूर की बेल से कहा,
"मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हें कमज़ोर समझता था, पर तुमने तो हमें जीवनदान दिया।"

आम ने भी सिर झुकाते हुए कहा,
"तुम सच्ची मित्र हो। हम पेड़ होकर भी खुद पर घमंड करते रहे, और तुम विनम्र रहकर भी सबसे अधिक उपयोगी निकलीं।"

अंगूर मुस्कराई और बोली,
"मित्रता में बड़ा या छोटा कोई नहीं होता। हम सबका अपना महत्व है। अगर हम एक-दूसरे की मदद करें, तो हर कठिन समय पार हो सकता है।"

इसके बाद बाग में एक बदलाव आया। तीनों अब एक-दूसरे की मदद करने लगे। अंगूर की बेल आम और सेब की शाखाओं पर चढ़ने लगी, जिससे छाया बनी रही। सेब और आम के पत्ते बेल को धूप और गर्मी से बचाने लगे।

बाग़ फिर से हरा-भरा हो गया। बच्चों की हँसी, पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों की सरसराहट से पूरा वातावरण गूंज उठा।


सीख:

"हर जीव, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, प्रकृति में उसकी अपनी खासियत होती है। जब मिलकर साथ चलते हैं, तभी जीवन में हर कठिनाई आसान बन जाती है।"


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